महाराजा गोपाल सिंह जी ने 1723 में इस मंदिर की नींव रखी थी जो 1930 में बनकर पूरा हुआ। उन्होंने इस मंदिर के अंदर चामुंडा जी की मूर्ती को भी स्थापित किया जिसे वह गंगराओं के किले से लाये थे जो 1150 में खिनची शासक मुकुंद दास जी द्वारा वहां स्थापित की गयी थी।
कैला देवी को महामाया का अवतार माना जाता है जिन्होंने नंद और यशोदा द्वारा जन्म लिया था। और उन्हें भगवान कृष्ण के स्थान पर रखा था जिसे कंस मारना चाहता था। उसे मारने का प्रयास करते समय उसने देवी का रूप ले लिया और कंस से कहा कि भगवान कृष्ण का जन्म पहले ही हो चूका है और वे अब यहाँ से बहुत दूर चले गया है |
किमती संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का एक बड़ा आंगन और चारखानेदार फर्श है | कैला देवी और चामुंडा देवी की मूर्तियां इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हैं। जो एक साथ मंदिर में स्थापित है। ध्यान देने योग्य यह बात है कि कैला देवी की मूर्ति का आकार बहुत बड़ा है और उनका सिर थोड़ा नीचे झुका हुआ है। इस मंदिर में कई लाल झंडे जो भक्तो द्वारा लगाये गये हैं।
इस मंदिर में चैत्र के महीने में वार्षिक कैला देवी मेला आयोजित किया जाता है। मुख्यतः उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों से लगभग 20,00,000 भक्त हिंदू ‘चैत्र’ माह में मेले के दौरान यहाँ आते है| कनक-दंडोतिस के रिवाज़ निष्ठावान श्रद्धालुओं द्वारा अपनाये जाते है। वे मंदिर तक पहुंचने के लिए 15 से 20 किलोमीटर तक की दूरी को तय करते है, और यह दूरी वे पैरों से चलकर नही बल्कि लेटकर दंडवत करते हुए उसी स्थिति में हाथो से रेखा बनाते हुए आगे बढ़ते है और मंदिर में पहुंचने तक इसी तरह चलते है।
सड़क से: कैला देवी मंदिर प्रमुख जिले के रोड से दक्षिण-पश्चिम करौली से 23 किमी की दूरी पर स्थित है। जहाँ आसानी से स्थानीय बस या स्थानीय टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है|
रेल द्वारा: कैला देवी मंदिर निकटतम गंगापुर सिटी रेलवे स्टेशन (35 किमी) से जुड़ा हुआ है जो प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, आगरा, मुंबई, चेन्नई, अजमेर, पाली, जयपुर, अहमदाबाद के रेलवे स्टेशनों से भी जुड़ा हुआ है।
हवाई यात्रा द्वारा : कैला देवी मंदिर निकटतम जयपुर हवाई अड्डे (160 किलोमीटर) के माध्यम से पहुंचा जा सकता है जो दिल्ली, मुंबई के लिए नियमित डोमेस्टिक उड़ानों से जुड़ा हुआ है।