हिंदू महाकाव्य ‘रामायण’ के अनुसार, जब भगवान राम रावण को मारकर अयोध्या वापस लौटे थे तब पहली बार दीवाली मनाई गयी थी। माना जाता है कि जब भगवान राम लक्ष्मण, सीता और हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने अपने घरों में तेल के दीपक जलाये थे और अंधेरी रात को रौशन कर दिया था। तब से लेकर अब तक, दीवाली या दीपावली हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनायी जाती है।
राजस्थान में दीवाली को बड़े ही आनंद और खुशी के साथ मनाया जाता है। भारत के अन्य हिस्सों की तरह, राजस्थान में दिवाली 5 दिनों की अवधि के लिए मनायी जाती है। धनतेरस से शुरू होकर, छोटी दीवाली, बडी (मुख्य) दीवाली, पडवा और भाईदूज तक मनायी जाती है। दीवाली की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को सजाते है और मिठाई बनाते है, नए कपड़े, आभूषण खरीदते हैं। दीवाली का आखिरी दिन आश्विन मास का 15 वां दिन है (हिंदू कैलेंडर के महीने में) जो अक्टूबर और सितंबर के महीने में आता है।
दीवाली पर लोग मिट्टी के दीये जलाते है रंगोली बनाते है, पूजा करते है, रिश्तेदारों, पड़ोसियों को मिठाई बाटँते है और बम-पटाखे जलाते है। ये सभी काम दूज का चांद या अमावस्या को आनंद के साथ किये जाते है। मिट्टी के दीपक, जिसे ‘दीया’ या ‘दीप’ भी कहा जाता है, जो घी लैंप, गणेश लैंप या मोमबत्तीयों को घरो के बाहर, फर्श पर, दरवाजों के किनारे पर रखा जाता है। माना जाता है कि ये सबकुछ ‘विघ्नहर्ता भगवान गणेश और धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए किया जाता है।
दीवाली पर व्यापारी अपने बई-खाते की पूजा करते हैं और अपने नए खातों को लिखना शुरू करते हैं। दीवाली पर आतिशबाजियाँ होती हैं बच्चों ने कई तरह के पटाखे जलाते है परिवार अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ उपहार और मिठाई बाटँते है।