भगवान हनुमान की मूर्ति के पीछे की कहानी यह है कि एक किसान अपने खेत में सिचांई कर रहा था तभी उसे एक मूर्ति मिली। किसान की पत्नी ने उस मूर्ति को अपनी साड़ी से साफ किया और हनुमान की मूर्ति को बालाजी का नाम दिया। पास के आसोता गांव में, आसोता के ठाकुर के सपने में बालाजी आए और उन्हे मूर्ति को सालासर भेजने का आदेश दिया। इसके अलावा, भगवान बालाजी के भक्त मोहनदास को भी मूर्ति दिखी और आसोता के ठाकुर को इसकी सूचना दी। उसके बाद मूर्ति सालासर लायी गयी।
सालासर धाम 1754 में मोहनदास द्वारा रेतीले पत्थर से मुस्लिम कारीगरों नूरा और दाऊ की मदद से बनाया। बाद में सीकर के जागीरदार राव देवी सिंह द्वारा, इसे कंक्रीड से ठोस बनाया गया और उनके वंशज कनीराम और ईश्वरदास ने इस मंदिर एक वर्तमान रूप दिया है। इसमें सफेद संगमरमर का भी इस्तेमाल किया गया है, इसका प्रार्थना सभा और मंदिरगर्भ में सोने और चांदी का शानदार काम है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार में सफेद संगमरमर नक्काशी का काम आकर्षक है और मंदिरों को फूलों के पैट्रंस से सजाया गया है।
सालासर धाम अपने चमत्कारों है और भक्तों की मनोकामनाओं के पूर्ण होने के लिए प्रसिद्ध है। लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में आते है और नारियल बांधने, सवामनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सवानी परंपराओं का अभ्यास करते हैं। हनुमान सेवा समिति द्वारा प्रबंधित और रखरखाव, हनुमान जयंती, चैत्री पौर्णिमा और अश्विन पौर्णिमा पर एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
सलासर बालाजी मंदिर राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो भगवान हनुमान को समर्पित है। हर साल भक्त इस मंदिर में बालाजी भगवान के दर्शन करने आते है। मंदिर में कई रीति रिवाज़ किये जाते है
नारियल बांधना: नारियल को मोली से बांधना इस मंदिर का सबसे प्रसिद्ध रिवाज़ है जो बडी़ संख्या में भक्तों द्वारा किया जाता है। माना जाता है कि यदि कोई भक्त इस रिवाज़ को पूर्ण विश्वास से करता हैं तो उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है। यह प्रथा तब शुरू हुई जब राव राजा देवी सिंह एक पुत्र चाहते थे और वृक्ष पर नारियल बांधते थे। कुछ महीने बाद उन्हे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से यह रिवाज़ कई भक्तों द्वारा किया जाता है।
सवामनी: यह एक और रिवाज़ है जो मंदिर में किया जाता है। इसमें, भक्त भगवान को लगभग 50 किलो भोजन चढ़ाते हैं। शब्द सवामनी शब्द “सावा” से आया है जिसका अर्थ है एक और एक चौथाई है इस भोजन पकाया जाता है और भोजन का पहला हिस्सा भगवान को दिया जाता है और फिर यह भक्तों को बाँटा जाता है। या जरूरतमंद लोगों को दिया जाता है।
सालासर बालाजी मंदिर का समय: मंदिर भक्तों के लिए सुबह 4:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला है।
सालासर बालाजी मंदिर का स्थानः सालासर बालाजी मंदिर, सीकर से 57 किमी दूर, लक्ष्मणगढ़ से 31 किमी और सुजानगढ़ से 27 किमी दूर स्थित है।