मंदिर हसनपुर के महाराजा मित्तल भगवान द्वारा बनाया गया था परन्तु कुछ समय बाद देवी दूर्गा की मूर्ति को सेठ रामवत मुच्छल द्वारा पूर्ण संगमरमर से बनाया गया। जिसका अनुसरण हसम्पुर के महाराजा द्वारा किया गया था। लेकिन बाद में मंदिर का प्रबंधन और देखभाल राजस्थान संरक्षण द्वारा किया गया था लेकिन राजस्थान के रियासत के साथ पेपसु के साथ विलय भी हुआ था और मंदिरों की देखरेख न करने के कारण ,यह खराब स्थिती में था लेकिन बाद में, राजस्थान के राजा ने कुछ पुजारीयों को नियुक्त किया जिन्हें इस मंदिर के केशवपंडित के रूप में बुलाया जाता था और उनका कर्तव्य देवी की पूजा करना और सभी आवश्यक धार्मिक रीति रिवाजो को पूरा करना था। और वे सभी राजसी राज्य के पेपसु में विलय के बाद मुख्य लोग थे लेकिन ये पुजारी स्वतंत्र बन गए और वे मंदिर की देखभाल और नियंत्रण की परवाह नहीं करते थे जिससे मंदिर का प्रबंधन बदतर हो गया था।
और अब यह मंदिर वहां आने वाले भक्तों को आम सुविधाएं देने के लिए योग्य नहीं था।मंदिर की स्थिति खराब होती जा रही थी। नवरात्रि के मेलों को अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं जा रहे थे और इस अवसरों पर मंदिर में अधिक तीर्थयात्रियी भी नहीं आ रहे थे, लेकिन श्री माता मानसा देवी बोर्ड (एसएमएमडीएसबी) के अंतर्गत आने के बाद मंदिर प्रबंधन में सुधार हुआ है । नवरात्रि मेलों के दौरान आवास का प्रावधान, कंबल,अस्थायी शौचालय, अस्थायी दवाखाने और अन्य सुरक्षा सुविधाओं के साथ प्रदान किए जाते हैं।